यह निर्दोष चयनों से उत्पन होने वाले हानिकारक समाज की कहानी है।
इन प्यारे बहुभुजों में से कुछ त्रिकोण हैं, कुछ चौकोर। और सब के सब थोड़े से "आकारवादी" हैं। पर बहुत ही थोड़े से! वास्तव में हर कोई विविध पड़ोसियों के बीच ही सुखी है।
एक बहुभुज को तभी हिलाया जा सकता है यदि वह अपने पड़ोसियों के बीच उदास हो। गर वह अपने स्थान पर सुखी है, तो उसे तब तक नहीं हिलाया जा सकता जब तक वह फिर से अपने पड़ोसियों के बीच उदास न हो जाए। यह बहुभुज एक सरल नीयम का पालन करते हैं:
“यदि मेरे पड़ोसियों में हमआकार १/३ से कम हैं, तो मैं अपना स्थान बदलना चाहूँगा।”
कितना हानिहीन आकार समाज है ना यह? हर बहुभुज विविध पड़ोसियों के बीच सुखी है। क्या इनका लघु आकारवाद इस समाज के स्वरूप को प्रभावित कर पाएगा? आईए देखें..
देखा आपने, यह आकार समाज किस तरह पृथक हो गया?
कभी एक पड़ोस में चौकोर ज़्यादा हो जाते हैं, पर यह उनका दोष नहीं कि त्रिकोण वहाँ से प्रवास कर जाते हैं। इसि प्रकार, किसी भी त्रिकोण-पड़ोस में एक नए चौकोर का स्वागत होगा, पर यह उनका दोष नहीं कि कोई चौकोर वहाँ बसना नहीं चाहता।
अगले अनुरूपण में उदास बहुभुज किसी भी अनियमित स्थान पर अपने आप चले जाते हैं। एक लेखाचित्र में समय के साथ बदलती आकार समाज की पृथक्करण मात्रा का भी चित्रण है।
यह क्यूँ हो रहा है? हर किसी का आकारवादी झुकाव बहुत ही लघु है, पर समूचा आकार समाज जुदा हो जाता है।
लघु व्यक्तिगत झुकाव विशाल सामूहिक झुकाव का कारण बन सकता है।
समानता एक अस्थिर संतुलन है। बहुत ही लघु व्यक्तिगत झुकाव पूरे समाज को पृथक्करण की चिकनी ढलान पर धकेल सकता है। पर क्या होगा यदि इन बहुभुजों का आकारवाद समाप्त कर दिया जाए? (या बढ़ा दिया जाए?)
आपने गौर किया कि यदि आकारवादी झुकाव ३३% से ज़्यादा हो तो पृथक्करण मात्रा में कितनी वृद्धि आती है? क्या होगा यदि यह झुकाव ५०% हो? आखिर यह किसी भी बहुभुज के लिए एक स्वाभाविक सोच है कि वह अपने पड़ोस में अल्पसंखख्यक ना हो।
तो क्या सबका आकारवादी झुकाव शून्य कर देना ही समाधान है? नहीं! वास्तविक समाज में लोग पूर्वतः अनियमित ढंग से नहीं बसे होंगे, और ना ही प्रतिदिन इस प्रकार फेरबदल करेंगे।
आपने गौर किया कि क्या नहीं हुआ? कुछ नहीं हुआ। आकारवादी झुकाव कम करने पर पूर्व-पृथक्कृत समाज नहीं बदला। तो पूर्व-पृथक्कृत समाज में केवल आकारवादी झुकाव कम करना काफि नहीं। क्या होगा यदि बहुभुज ज़्यादा विविधता चाहें?
ये क्या? यद्यपि हर बहुभुज ९०% तक भी हमआकार पड़ोसी होने से सहमत हैं, परन्तु समाज की विविधता बढ़ गयी! इसी को अब बड़े स्तर पर देखते हैं। अब हम बहुभुजों के आकारवादी झुकाव के साथ-साथ "विविधतावादी" झुकाव को भी बदल पाएँगे।
तो सह-बहुभुजों, ज़रा सी सोच बदलने से एक पूर्व-पृथक्कृत समाज को भी सुधारा जा सकता है। बात त्रिकोणों या चौकोरों की नहीं, बात है एक स्वीकार्य समाज की रचना करने का निर्णय लेने की और उसे सिद्ध करने के लिए सक्रिय प्रयिस करने की।
इन बहुभुजों को
मि
त्र
ता
के आंगन में ले आईए
(ध्यान रहे: सीधे आंगन में मत डालिए। जोड़ों को साथ-साथ रखते हुए चलिए)
पहले-पहल, अकेले चलना कठिन लगता है...परन्तु उत्तरोत्तर साथ-साथ काम करते हुए हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
१. लघु व्यक्तिगत झुकाव → विशाल सामूहिक झुकाव।
जब किसी समाज को आकारवादी कहा जाता है, तो यह व्यक्तिगत आरोप नहीं है। हर व्यकति के मुख्यतः आकारवादी न होने पर भी समाज मुख्यतः आकारवादी प्रकट हो सकता है।
२. अतीत वर्तमान को प्रभावित करता है।
मेज़ पर खाना गीराना बंद करने से वह अपने आप हमेशा साफ नहीं रहेगा।
समानता बनाए रखना स्वच्छता बनाए रखने के समान है। इसके लिए निरंतर श्रम करने की ज़रूरत है।
३. अपने पड़ोस में विविधता की माँग करिए।
गर लघु आकारवादी झुकाव से यह झंझट खड़ा हुआ है, तो शायद लघु विविधतावादी झुकाव इसका समाधान है।
अपने दोस्तों और सहयोगियों पर नज़र डालिए - यदि आप सब त्रिकोण हैं तो आप चौकोरों की उत्कृष्ट संगत से वंचित रह रहे हैं। अपने तत्काल अन्तर्गुट को विभिन्न करने का प्रयत्न कीजिए।